Light
by
Arif Naqvi
I love my Allah
Love Prophet and his family
his companions and friends
I love my Quran
its teachings and message
and look towards Kaba,
because I search for Light
The holy Light rising from the desert,
fromthe sacred Mecca
and from the hills of Sinai,
from the shining Cross and glittering Hilal,
sparkling from the dust and stones,
from the trees and grass,
from fragrant roses and pricking thorns,
from the naughty eyes of the children,
from the rosy cheeks of the maids
and from the stick holding hands of old.
In every corner of the world,
in all colours of the universe -
black, white, dark and pale.
The Light coming from the forehead of Krishna
and Rama and Buddha,
from the bleeding hands of the toiling masses,
jewelling Taj and Pyramids,
from ringing bells of temples and churches
and Moezzin's call for prayer.
The Light that shows path to us
in the dakness of night.
The heavenly Light, Allah's Light
The Light of truth, of affection and sacrifice.
The Light - I love that Light.
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A poem on Eid
by Arif Naqvi
ईद आई है तो लग जाओ गले से मेरे
दोस्तो आज तो बेज़ारे मुहब्बत न बनो
रह्मते अर्श से नाजिल हैं जहाँ पर तेरे
सज्दए शुक्र हो आज़ारे मुहब्बत न बनो
इद आई है तो ईमान को ताज़ा करलो
मैकदा छोड़ के दुनिया में गुज़ारा करलो
दिल के ऐवान में रोशन है जो क़न्दीले खिरद
जल्वाए तूर का हर शै में नजारा कर लो
ईद आई है तो एलाने रफाक़त कर दो
अमन-ओ इंसाफ का इखलास का परचम खोलो
बेकस-ओ बेबस-ओ बेआसरा लोगों के लिए
ज़ीस्त को ज़ीस्त करो दिल के दरीचे खोलो
सज्दए शुक्र में जाते हुए कहना आरिफ
मेरे अल्लाह मेरा साज़े मुहब्बत सुन ले
बद्लिया चीर के तारों को नुमाया करदे
शब् के सन्नाटे में एक बार चराग़ा कर दे
ईद आई है तो लग जाओ गले से मेरे
सज्दए शुक्र करें मिल के गुजारिश कर लें
मेरे अल्लाह हर एक शै में तजल्ली भर दे
क्लब.ए इनसान को इनसान के काबिल कर दे
आरिफ नकवी